दो दशक से अधिक समय से इलाके के किसान काफी परेशान है
लखनऊ। जैसे विभिन्न योजनाओं के तहत हर घर में बिजली पहुंची है, हर रसोई में गैस सिलेण्डर पहुंचा है। इलाके के हजारों किसानों को अब भी इंतजार है कि, काश! कोई ऐसी योजना आए, जिसमें अन्नदाता की संज्ञा से नवाजे जाने वाले किसानों के खेत की मेड़ तक सिंचाई का महफूज साधन, नहर का पानी भी खेत तक पहुंच जाये। किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने के लिए कोई नई योजना बनाने की जरूरत नही बल्कि पुरानी जो नांलिया ही सिंचाई विभाग की थी, जिन नालियों से खेतों में पानी पहुंचता था, बस उन्ही को नज़री-नक्शा में ढूढ लिया जाये और साफ-सफाई करा दी जाये, तो आज भी उन्ही खेतों से सोना उगने में देर नही होगी। वर्तमान समय में पानी की किल्लत से जमीन बजंर होती जा रही है।
अंतिम दौर में है कुलाबों और नालों की जिंदगी
खेतों तक पहुंचने वाली नांलियां पूरी तरह गायब हो चुकी है। पहले नहर से पानी कुलाबें में आता था फिर नाले में तब्दील होते हुए ये पानी सिंचाई विभाग की नांलियों के सहारे खेतों में पहुंचता था किंतु अब नहरों के कुलाबें ढूढे नही मिल रहे है और नालें भी पूरी तरह साफ-सफाई न होनेे के कारण अपनें ही अस्तित्व की अंतिम जंग लड़ रहे है। नई पीढ़ी के किसान अब यहां तक भूल चुके है कि रजबहों और माइनरों से कभी पानी भी सहुलियत के साथ खेतों तक पहुचता था।
ऐसे गायब हुई है नांलियां
निजी बिल्डर्स ने कही पर नालों को पाटकर आलीशान इमारत बना डाला है तो ही पर प्रापर्टी डीलरों से खेतों तक पानी पहुचानें वाली नांलियों को अपनें प्लाट में मिला लिया है। सरकारी पक्की नांलियां देखरेख के अभाव में टूट गयी है। इसमें पानी खेतों तक ले जाना कतई संभव नही बचा है क्योंकि पक्की बनी हुई नांलियों की ईट वर्तमान समय में उखड़ चुकी है।
कई किलोमीटर तक जाता था नहर का पानी
किसानों को दो दशक पहले इन्ही माइनरों और रजबहों से खेतों की सिंचाई के लिए कई किलोमीटर तक पानी मिलता था। जिसमें रायबरेली रजबहे से ही कमालपुर बिचिलका और निगोहां,मस्तीपुर,कलन्दरखेड़ा सहित दर्जनों माइनरों से हजारों हेक्टेयर में फैली हुई फसल की सिंचाई बड़ी आसानी के साथ होती थी।
