
निगोहां।निगोहां कस्बा से आगे प्राचीन भवरेश्वर मंदिर तीन जिलों की सीमा पर बसा है। यहां लाखों की संख्या में श्रवण मास में श्रद्धालु तो आते ही हैं, साथ ही महाशिवरात्रि पर्व पर भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। कई किलोमीटर तक लगने वाली भीड़ स्वयं ही इस मंदिर की ऐतिहासिकता को बयां करती है। इसी भीड़ और भक्तों की सुरक्षा के लिए निगोहां, बछरावां और मौरावां थाने की पुलिस भी मुश्तैद रहती है। इसके अलावा प्रत्येक सोमवार को भी यहां पर मेला लगता है। जिसमें कई जिलों से लाखो की संख्या में लोग आते है।
मेले में बर्तन , कपडे, लकडी व लोहे की तथा पशुओं की बिक्री हेत् व्यवस्था रहती है। साथ ही विभिन्न प्रकार के खेल तमाशा बच्चो के मनोरंजन तथा नौटंकी व सिनेमा अदि मनोरंजन हेत् व्यवस्था रहती है। जिसकी व्यवस्था का सम्पूर्ण संचालन सुदौली स्टेट के द्वारा किया जाता है। बुजुर्गों की माने तो यह मेला कई शतकों से चला आ रहा है। इस मेले में लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, बाराबंकी इनके अलावां इलाहाबाद, फैजाबाद, बनारस, फतेहपुर आदि दूर -दूर लोग आते है और मंदिर में जलाभिषेक कर मेले में तरह तरह के सर्कस तथा नाटक का
लुफ्त उठाते है
बैल गाड़ी का किया था मात्र "चार आना"
निगोहां के रहने वाले 78 वर्षीय किशनलाल बताते है कि उनके समय मे मेला जाने के लिये कोई भी संसाधन नही थे। मेला जाने के लिये दर्जनों
एक्का तांगा चला करते थे जिसका किराया “चार आना ” हुआ करता था।
उनके गांव व आसपास के गांव के बहुत से लोग महिलायें – पुरुष बच्चो को लेकर समूह बनाकर कई किलोमीटर तक पैदल मेला जाया करते थे। बैलगाड़ी का जमाना था जिनके पास बैलगाड़ी होती थी तो वह मोहल्ले के कई लोगो के साथ मेला जाया करते थे।
20 किलोमीटर पैदल चलकर पहुँचते थे मेला------------
बुजुर्गों ने बतया की उस समय इस मेले में कई जिलों के लोग 20 से 25 किलोमीटर तक की दूरी तय कर पैदल ही मेला जाते थे।
आज इसी मेले में पहुंचने के लिए सैकड़ो वाहन चलाने लगे लोगो के पास निजी वाहन हो गए पहले साइकिल भी किसी किसी के पास हुआ करती थी।
मेले से गायब हो गए मिट्टी के खिलौने--------------------------
रंजना शर्मा ने बताया कि, आज के मेले में मिट्टी के खिलौनों की जगह प्लास्टिक के खिलौनों ने ले ली। उनके समय मे तरह तरह के खिलौनों होते थे एक आने में झोला भर खिलौने लाते थे हर कोई ये खिलौने लेकर जरूर जाता था।
मेले से यमपुरी का नाटक हुआ गयाब---------------
बुजुर्गों ने बताया कि कभी इस मेले में तरह तरह के नाटक , सर्कस
होते थे जिसको देखने के लिये लोगो की भींड़ लगती थी पहले इस मेले में यमपुरी नाटक हुआ करता था जो काफी दूर दूर तक प्रसिद्ध लोकप्रिय होते थे।
उस समय नाटक से उन्हें कुछ सीखने को मिलता था। आज इन नाटक ओर सर्कस की जगह अश्लील गानों ने ले ली है जिनसे नवयुवक बर्बादी की ओर जा रहा है।