बागों में छांव, खलिहानों में रौनक, अब कहाँ देखने को मिलेगी?
मैं निगोहां हूं— मैं प्रदेश की राजधानी का अंतिम कस्बा हूं और द्वापर युग से लेकर आज तक कई इतिहास भी समेटे हुए हूं। हमारा नामकरण भी राजा नहुष के कारण निगोहां पड़ा। हमने अज्ञातवास के दौरान पांचो पांडवों को भी शरण दी थी और निगोहा के ही चंद सरोवर में उन्हें पानी भी पिलाया था और विश्राम भी कराया था। राजधानी का अंतिम कस्बा होने के कारण रायबरेली जाने वाले दिग्गज राजनेता, जिसमें कई प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, हमारे पास से होकर गुजरें है। यही नहीं संत समागम में भी हमने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और तीन दशक पूर्व मथुरा के एक संत
( बाबा जय गुरु देव ) ने बड़े पैमाने कई दिनों तक हमारे पास यहीं पर सत्संग भी किया ।
——-लेकिन समय बदला और मेरा परिवेश भी बदल गया। कभी हमारे हृदय में लहराती फैसले होती थी, बैलगाड़ियों से अनाज जाता था, खेत-खलियानों में रौनक होती थी। अब बाग खलिहान और खेतों में फसल नहीं, बल्कि गगन को चूमती हुई इमारतें खड़ी हो गई है। खेतों में खेती नहीं हो रही है बल्कि मकान बनाए जा रहे हैं। इससे निगोहां की भौगोलिक स्थिति भी बदल चुकी हैं। जिन आंखों से गाँव देखा था, उन्ही नजरों से शहर भी देख रहा हूं। इलाके में लगभग 70 से अधिक गांव है, ऐसा कोई भी गांव नही बचा रहा ,जहां पर निजी विकसित कम्पनियों का डेरा न हो। तेजी के साथ कृषि योग्य भूमि का बदलाव हुआ। कुछ दिन बाद सबसे ज्याद दिक्कत तो तब आयेगी जब गेहॅू,धान,और अन्य फसल के लिए जमीन नही बचेगी। खेती का रकबा घटने के कारण फसलों के उत्पादन में भी भारी गिरावट भी देख रहा हूं। और ये भी देख रहा हूं कि लोग अब भी घर से निकलकर सीधे खेतों में फार्म हाउस बनाकर शिफ्ट हो रहे है। बागो की छांव, खलिहानों में रौनक, अब कहाँ देखने को मिलेगी???
