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न्यायालय से एनबीडब्ल्यू जारी होने पर घर पहुँची थी पुलिस,तभी से अवसाद में था मृतक
लखनऊ।है निगोहां थाना क्षेत्र के हरबंशखेड़ा गांव निवासी 52 वर्षीय वैन चालक भारतलाल गुप्ता ने बुधवार सुबह मस्तीपुर गांव के पास ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। घटना से गांव में सनसनी फैल गई। परिजनों का आरोप है कि पुराने मुकदमे में गिरफ्तारी के डर से वह मानसिक रूप से काफी परेशान चल रहे थे। सूचना मिलते ही निगोहां पुलिस व जीआरपी मौके पर पहुँची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।परिजनों ने बताया कि भारतलाल कई वर्षों से वैन चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। वर्ष 2005 में उनकी गाड़ी से मोहनलालगंज के गौरा गांव में एक सड़क हादसा हुआ था, जिसमें एक बच्चे की मौत हो गई थी। इस मामले में अदालत में मुकदमा विचाराधीन था। पत्नी गायत्री गुप्ता ने आरोप लगाया कि इसी मुकदमे में अदालत से एनबीडब्ल्यू जारी हुआ था। बीते रविवार को मोहनलालगंज पुलिस वारंट लेकर घर पहुँची थी और भारतलाल को थाने चलने को कहा था।परिजनों के अनुसार उस समय भारतलाल ने कपड़े बदलने का बहाना कर पीछे के दरवाजे से निकलकर फरार हो गए थे। इसके बाद से वह गुमसुम रहने लगे थे और अवसाद में डूब गए। बुधवार सुबह करीब 6 बजे उन्होंने वकील से मिलने की बात कहकर घर से निकलने की बात कही। कुछ घंटे बाद सूचना मिली कि मस्तीपुर गांव के पास रेलवे ट्रैक पर उनका शव पड़ा है।
मृतक के परिवार में पत्नी गायत्री के अलावा तीन बेटे ऋषभ, आयुष और आदित्य तथा एक बेटी सपना है। बड़ा बेटा ऋषभ प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है, जबकि आयुष ऑटो चलाकर परिवार की मदद करता है। घटना के बाद से परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है।एसीपी मोहनलालगंज रजनीश वर्मा ने बताया कि मृतक के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। प्रथम दृष्टया मामला आत्महत्या का लग रहा है। सटीक कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट होगा। उन्होंने कहा कि अदालत से जारी एनबीडब्ल्यू के आधार पर पुलिस कार्रवाई करने गई थी, लेकिन उस समय मृतक घर पर नहीं मिला था।गांव में हुई इस घटना से माहौल गमगीन है। ग्रामीणों का कहना है कि भारतलाल मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति थे और परिवार के लिए हमेशा मेहनत करते थे। लेकिन मुकदमे की गिरफ्तारी का दबाव और पुलिस की अचानक कार्रवाई ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि अगर पुलिस थोड़ी नरमी बरतती और समझदारी से काम लेती तो शायद भारतलाल इतना बड़ा कदम न उठाते। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि पुराने मामलों में वर्षों तक कार्रवाई लटकी रहती है और अचानक दबाव बनाना कई बार आम आदमी को मुश्किल में डाल देता है।